मध्यप्रदेश का प्राचीन इतिहास
लौह युगीन संस्कृति ( Iron age culture )
1000 ई. पूर्व से 950 ई. पूर्व तक -
लोहे की खोज के काल को लौह युगीन संस्कृति या उतर वैदिक काल कहा जाता है | इस काल के साक्ष्य मध्यप्रदेश के भिंड, ग्वालियर , मुरैना जिले में मिले थे | यहाँ से मिट्टी के बर्तन धूसर रंग के और चित्रित मृदभांड मिले थे | इस प्रकार मध्यप्रदेश का इतिहास ताम्रपाषाण काल के बाद लौह युग से सुरु होता है |
महापाषाण संस्कृति ( Megalithic culture ) -
दक्षिण भारत में स्थित कुछ स्थलों पर विशाल पाषाणों से बनी हुई समाधियाँ प्राप्त हुई थी | जिन्हें महापाषाणकालीन स्मारक या मेगालिथ के नाम से जाना जाता है | इसलिए इस काल को महापाषाण काल के नाम से जाना जाता है | मध्यप्रदेश के रीवा तथा सिवनी जिलों में भी महापाषाण युगीन संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए थे |
वैदिक काल 1500 ई. पूर्व से 600 ई. पूर्व ( Vedik age ) -- वैदिक सभ्यता का विकास भारत में आर्यों के आगमन के साथ हुआ था |
- सुप्रसिद्ध इतिहासकार वेबर के अनुसार आर्यों को नर्मदा और उसके निकट प्रदेशों की पूर्ण रूप से जानकारी थी |
- आर्यों ने भारत में "पंचनद प्रदेश" ( जिसे वर्तमान में पंजाब कहा जाता है ) से अन्य प्रदेशों को प्रस्थान किया था |
- महर्षि अगस्त्य के नेर्तत्व में यादवों का एक समूह भी इस क्षेत्र में बस गया और इसी क्षेत्र में आर्यों का आगमन हुआ |
- उत्तर वैदिक काल की कुछ अनार्यजातियों का उल्लेख "ऐतरेय ब्राह्मण" "सांख्यान श्रोतसूत्र " एवं "शतपथ ब्राह्मण" नामक ग्रंथो में पाया गया था | ये जातियां मध्यप्रदेश के जंगलो में निवास करती थी | जिनमें मुख्यतः "निषाद" जाती का उल्लेख विशेष रूप से मिलता है |
- मनु वैवस्वत की पुत्री इला का विवाह सोम ( चंद्र ) से हुआ था | इनके राज्य का नाम "ऐल साम्राज्य" था | इनके साम्राज्य का विस्तार बघेलखण्ड तक रहा |
- सोम के पुत्र आयु और अमावसु हुए |
- राजराजा आयु की तीसरी पीड़ी में चंद्रवंशी ययाति हुआ जिसने शुक्र भार्गव ऋषि की पुत्री देवयानी से विवाह किया |
- ययाति ने अपने साम्राज्य का विभाजन अपने पाँचो पुत्रो में बाँट दिया था | इस विभाजन में यदु चर्मणवति (चम्बल ), नेत्रवती (बेतवा ) और शुक्तिमती ( केन ) का घाटी क्षेत्र प्राप्त हुआ और उसके नाम पर ही यादव वंश की स्थापना हुयी |
- दन्तवक्र नामक दैत्य के नाम पर "दतिया" नामक राज्य की स्थापना हुई |
- मनु के पुत्र इक्ष्वाक के नाम पर ही इक्ष्वाकु वंश की स्थापना हुई | इसके ही पुत्र ने दण्डकारण्य ( बस्तर ) राज्य की स्थापना की थी |
- इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा मान्धाता हुए, जो चक्रवर्ती सम्राट था |
- पौराणिक कथाओं के अनुसार कारकोट नागवंशी शासक नर्मदा क्षेत्र के शासक थे | मौनेय गंधर्वों से जब उनका संघर्ष हुआ तो अयोध्या के इक्ष्वाकु नरेश मांधाता ने अपने पुत्र पुरूकुत्स को नाग राजाओं की सहायता के लिए भेजा जिसने गंधर्वों को पराजित किया | पुरुकुत्स ने ही रेवा का नाम नर्मदा कर दिया |
- इसी वंश के मुचुकुन्द ने रिक्ष और पारियात्र पर्वतमालाओं के बीच नर्मदा नदी के तट पर अपने पूर्वज नरेश मांधाता के नाम पर मांधाता नगरी ( वर्तमान ओंकारेश्वर ) की स्थापना की |
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