मध्यप्रदेश का ताम्रपाषण कालीन इतिहास
ताम्रपाषण कालीन संस्कृति (chalcolithic Age)
( 2000 ई.पूर्व से 900 ई. पूर्व तक )
मध्यप्रदेश में सभ्यता का दूसरा चरण ताम्रपाषाण काल के रूप में विकसित हुआ | इस युग में तांबे की खोज कर ली गयी थी |
" ताम्र का अर्थ है ताँबा और पाषाण का अर्थ है पत्थर "
इस युग में मानव ने पत्थर के साथ साथ सर्वप्रथम ताँबे का प्रयोग करना प्राम्भ कर दिया था |मध्यप्रदेश में हड़प्पा सभ्यता के समकालीन यह सभ्यता नर्मदा घाटी के निकट 2000 ई.पूर्व विकसित हुई थी | किन्तु हड़प्पा संस्कृति के चिन्ह मध्यप्रदेश में नहीं मिले है |
- मध्यप्रदेश में स्थित बालाघाट एवं जबलपुर जिले के कुछ भागो में ताम्रकालीन औजार भी प्राप्त हुए है | ताम्र विधियों में सबसे महत्वपूर्ण विधि बालाघाट जिले में स्थित गंगेरियाल की है|
- मालवा में "वृषभ" मूर्तियों के साक्ष्य मिले है जिससे यह ज्ञात होता है की वृषभ इस काल में धार्मिक सम्प्रदाय के प्रतीक थे |
कायथा -
- यह प्रथम ताम्रपाषाणकालीन स्थल था जिसका अस्तित्व 2000 ई.पूर्व तक रहा |
- म.प्र. राज्य के उज्जैन जिले के तराना तहसील में स्थित कायथा ताम्रपाषणकालीन स्थल है |
- यह स्थल उज्जैन जिले से लगभग 25 कि.मी. दूरी पर काली सिंध नदी तट के दाहिने तट पर स्थित है |
- इस स्थल की खोज सन 1964 ई. में पुरातत्वविद विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गयी थी |
- कायथा में चाक की सहायता से बनाये गए मिटटी के बर्तन प्राप्त हुए है |
- यहाँ से कंकण, छैनी और कुल्हाड़ियां ताँबा धातु की बानी हुई प्राप्त हुई है |
- लाल मृदभांडों पर काले रंग के चित्र पाए गए है |
- कायथा का उल्लेख प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपनी पुस्तक वृहज्जातक में किया है | वराहमिहिर का जन्म कायथा में ही हुआ था |
एरण -
- आध्य ऐतिहासिक काल में ताम्रपाषाण संस्कृति के निर्माताओं ने एरण में एक महत्वपूर्ण तथा समृद्ध नगर की नींव डाली |
- यह मध्यप्रदेश के सागर जिले में बिना नदी तट के किनारे पर स्थित है |
- इस ताम्रपाषण कालीन बस्ती का समय 2000 ई.पूर्व का माना जाता है |
- एरण से ताँबे की कुल्हाड़ियां ,सोने के गोल टुकड़े,मिटटी की पशु आकृतियाँ ,लाल -काले मृदभांड , चित्रित मृदभांड आदि प्रमुख है |
- इस काल में राजतंत्रात्मक शाशन पद्धति प्रचलित थी | मापतौल पर राजा का नियंत्रण प्रकट करने वाले सामान वजन के पत्थर के तौल पाए गए है |
- एरण में भगवान विष्णु के अवतार वराह, विष्णु तथा नरसिंघ मंदिर स्थित है |
नावदाटोली -
- मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित महेश्वर के के दूसरी ओर स्थित है |
- सन 1952 से 1957 के मध्य पुरातत्वविद एच.डी. सांकलिया द्वारा इस पुरास्थल का उत्खनन कार्य किया गया था |
- इसका अस्तित्व लगभग 1500 ई.पूर्व से 1200 ई। पूर्व तक का माना जाता है |
- इस काल के निवासी गोल, आयताकार या वर्गाकार झोपड़ियां बनाते थे | इस काल निवास स्थान आकार में बहुत छोटे होते थे | सबसे बड़ा निवास स्थान भी लम्बाई में साढ़े चार मीटर और चौड़ाई में तीन तीन मीटर से अधिक नहीं है |
- यहाँ के लोग जौं, गेंहूँ ,धान, मूंग, उड़द , चना, मसूर तथा मटर की खेती करते थे |
- यहाँ से ताँबे की बनी हुई चिपटी, कुल्हाड़ी , मछली पकड़ने के कांटे , कटार तथ चूड़ियाँ प्राप्त हुए है |
- यहाँ के लोग गाय, बैल , भैंसे, भेड़- बकरी आदि का पालन करते थे |
- नवदाटोली में किये गए उत्खनन कार्य में सर्वप्रथम विशिष्ठ लाल रंग तथा गुलाबी रंग के पात्र जिन पर काले रंग की चित्रकारी पाई गयी है |
नागदा - मध्यप्रदेश के चम्बल नदी तट के किनारे स्थित है | यहाँ से भी ताम्रपाषाणकालीन मृदभांड और अन्य वस्तुएँ आदि मिले है |
मध्यप्रदेश में स्थित अन्य ताम्रपाषाणकालीन अन्य स्थल - महेश्वर, बेसनगर, उज्जैन, शाजापुर, इंदौर, पश्चिमी निमाड़ , धार, जबलपुर, भिंड आदि ताम्रपाषाणकालीन स्थल है |
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